वैदिक पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ परà¥à¤µ नव संवतà¥à¤¸à¤°â€™
Author
Manmohan Kumar AryaDate
09-Apr-2016Category
à¤à¤¾à¤·à¤£Language
HindiTotal Views
1606Total Comments
0Uploader
UmeshUpload Date
19-Apr-2016Download PDF
-0 MBTop Articles in this Category
- गायतरी मनतर व उसका परामाणिक
- आदरश मानव का निरमाण हो
- ‘महरषि दयाननद का वेद परचार
- महरषि दयाननद सममत शासन परणाली’
- शरियत कानून आधा-अधूरा लागू कयों
Top Articles by this Author
- ईशवर
- बौदध-जैनमत, सवामी शंकराचारय और महरषि दयाननद के कारय
- अजञान मिशरित धारमिक मानयता
- यदि आरय समाज सथापित न होता तो कया होता ?
- ईशवर व ऋषियों के परतिनिधि व योगयतम उततराधिकारी महरषि दयाननद सरसवती
मनà¥à¤·à¥à¤¯ के जीवन में परà¥à¤µà¥‹à¤‚ की महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ à¤à¥‚मिका होती है। वरà¥à¤· या संवतà¥à¤¸à¤° के रूप में परà¥à¤µ को इस रूप में जान सकते हैं कि à¤à¤• वरà¥à¤· की समापà¥à¤¤à¥€ व उसके अगले दिन से दूसरे वरà¥à¤· का आरमà¥à¤à¥¤ मनà¥à¤·à¥à¤¯ जीवन में à¤à¤• शिशॠके रूप में जनà¥à¤® लेता है और समय के साथ शिशॠकी अवसà¥à¤¥à¤¾ समापà¥à¤¤ होकर बाल व किशोरावसà¥à¤¥à¤¾ आ जाती है। इसके बाद यà¥à¤µà¤¾à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾, फिर पà¥à¤°à¥Œà¤¢à¤¼à¤¾à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ और अनà¥à¤¤ में वृदà¥à¤§à¤¾à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ आती है। यह जीवन की विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ अवसà¥à¤¥à¤¾à¤“ं का आना व पिछली का पूरा होना à¤à¤• पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° का परà¥à¤µ ही होता है परनà¥à¤¤à¥ हमें इसका पता ही नहीं चलता और न इसे मनाने की परमà¥à¤ªà¤°à¤¾ ही हैं। हां, इसका à¤à¤• अनà¥à¤¯ रूप जनà¥à¤® दिवस को मनाने की परमà¥à¤ªà¤°à¤¾ को कह सकते हैं। मनà¥à¤·à¥à¤¯ की आयॠà¤à¤•-à¤à¤• दिन, à¤à¤•-à¤à¤• माह और à¤à¤•-à¤à¤• वरà¥à¤· करके बढ़ती है। हर दिन और हर माह तो परà¥à¤µ व उतà¥à¤¸à¤µ मना नहीं सकते, अतः वरà¥à¤· में à¤à¤• दिन जनà¥à¤®à¥‹à¤¤à¥à¤¸à¤µ मनाने की परमà¥à¤ªà¤°à¤¾ कà¥à¤› समय से चल पड़ी है। लोगों को इस दिवस को मनाने का कोई जà¥à¤žà¤¾à¤¨ à¤à¥€ नहीं है। लोग सोचते हैं कि मितà¥à¤°à¥‹à¤‚ व समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को à¤à¤•à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¤ कर केक आदि काटकर व पà¥à¤°à¥€à¤¤à¤¿à¤à¥‹à¤œ करा दिया जाये। वैदिक परमà¥à¤ªà¤°à¤¾ के आधार पर दृषà¥à¤Ÿà¤¿ डाले तो जनà¥à¤® दिवस मनाने में कोई आपतà¥à¤¤à¤¿ नहीं है परनà¥à¤¤à¥ इसको मनाने के रूप में गà¥à¤£à¤µà¤°à¥à¤§à¤¨ किया जा सकता है। यदि जनà¥à¤® दिवस के दिन लोग वृहत यजà¥à¤ž करें तो यह जीवन में अनेक दृषà¥à¤Ÿà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से लाà¤à¤ªà¥à¤°à¤¦ व पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾à¤¦à¤¾à¤¯à¤• हो सकता है। सà¥à¤§à¥€ आरà¥à¤¯ परिवारों में यजà¥à¤ž के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ ही जनà¥à¤® दिवस व अनà¥à¤¯ परà¥à¤µ मनाये आते हैं। यह अलà¥à¤ªà¤µà¥à¤¯à¤¯ साधà¥à¤¯ तो हैं ही, साथ ही परिणाम में और अनà¥à¤·à¥à¤ ानों की तà¥à¤²à¤¨à¤¾ में अधिक लाà¤à¤¦à¤¾à¤¯à¤• हैं। à¤à¤¸à¥‡ ही अनेक परà¥à¤µ हैं जिनमें से à¤à¤• नव-संवतà¥à¤¸à¤° का परà¥à¤µ à¤à¥€ होता है। यह à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ परमà¥à¤ªà¤°à¤¾ का परà¥à¤µ है जो पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• वरà¥à¤· चैतà¥à¤° माह के शà¥à¤•à¥à¤² पकà¥à¤· की पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤ªà¤¦à¤¾ को मनाया जाता है। यह नवसंवतà¥à¤¸à¤° à¤à¤• पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से इस सृषà¥à¤Ÿà¤¿ व बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤£à¥à¤¡ का जनà¥à¤® दिवस है। इससे हमें यह लाठहोता है कि अनेक तथà¥à¤¯à¥‹à¤‚ का सà¥à¤®à¤°à¤£ इस परà¥à¤µ को मनाकर हो जाता है। मà¥à¤–à¥à¤¯ तथà¥à¤¯ तो यह है कि हमारी सृषà¥à¤Ÿà¤¿ चैतà¥à¤° शà¥à¤•à¥à¤² पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤ªà¤¦à¤¾ के दिन आज से 1,96,08,53,116 à¤à¤• अरब छियानवे करोड़ आठलाख तà¥à¤°à¥‡à¤ªà¤¨ हजार à¤à¤• सौ सोलह वरà¥à¤· पूरà¥à¤µ आरमà¥à¤ हà¥à¤ˆ थी। आज चैतà¥à¤° शà¥à¤•à¥à¤² पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤ªà¤¦à¤¾ को इस सृषà¥à¤Ÿà¤¿ में मानव उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ का 1,96,08,53,117 हवां वरà¥à¤· आरमà¥à¤ हà¥à¤† है। यह तथà¥à¤¯ है और यह सारे विशà¥à¤µ के लिठमारà¥à¤—दरà¥à¤¶à¤• होना चाहिये। हमें जà¥à¤žà¤¾à¤¤ है कि सृषà¥à¤Ÿà¤¿ में मानव धरà¥à¤®, सà¤à¥à¤¯à¤¤à¤¾ व संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ का सरà¥à¤µà¤ªà¥à¤°à¤¥à¤® आविरà¥à¤à¤¾à¤µ व विकास à¤à¤¾à¤°à¤¤ में ही हà¥à¤†à¥¤ संसार के जितने à¤à¥€ देश हैं उनका इतिहास कà¥à¤› सौ या हजार वरà¥à¤· पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¤¾ है जबकि à¤à¤¾à¤°à¤¤ का इतिहास 1.96 अरब वरà¥à¤· पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¤¾ है। सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आरमà¥à¤à¤¿à¤• काल में लिखी गई मनà¥à¤¸à¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿ के à¤à¤• शà¥à¤²à¥‹à¤• को à¤à¥€ सà¥à¤®à¤°à¤£ कर लेते हैं। ’à¤à¤¤à¤¦à¤¦à¥‡à¤¶à¤¸à¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¤¸à¥à¤¯ सकाशाद अगà¥à¤°à¤œà¤¨à¥à¤®à¤¨à¤ƒà¥¤ सà¥à¤µà¤‚ सà¥à¤µà¤‚ चरितà¥à¤°à¤‚ शिकà¥à¤·à¤°à¥‡à¤¨à¥ पृथिवà¥à¤¯à¤¾à¤®à¥ सरà¥à¤µà¤®à¤¾à¤¨à¤µà¤¾à¤ƒà¥¤à¥¤’ इस शà¥à¤²à¥‹à¤• में महरà¥à¤·à¤¿ व राजा मनॠजी ने आरà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤°à¥à¤¤à¥à¤¤ देश की सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ का वरà¥à¤£à¤¨ करते हà¥à¤ कहा है कि पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ काल से हमारा देश ही संसार के अगà¥à¤°à¤£à¥€à¤¯ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को जनà¥à¤® देता, उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ करता अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ शिकà¥à¤·à¤¿à¤¤ कर अनका निरà¥à¤®à¤¾à¤£ करता आ रहा है। संसार के देशों के लोग हमारे देश में अपने-अपने योगà¥à¤¯ चरितà¥à¤° व जà¥à¤žà¤¾à¤¨-विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ की शिकà¥à¤·à¤¾ लेने हमारे देश में ही आते थे। इससे यह अनà¥à¤®à¤¾à¤¨ होता है कि सृषà¥à¤Ÿà¤¿à¤•à¤¾à¤² के आरमà¥à¤ से लेकर कà¥à¤› हजार वरà¥à¤· पूरà¥à¤µ तक हमारा à¤à¤¾à¤°à¤¤ वा आरà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤¤à¥à¤°à¥à¤¤ देश ही संसार के लोगों को जà¥à¤žà¤¾à¤¨-विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ सहित परा व अपरा विदà¥à¤¯à¤¾ à¤à¤µà¤‚ चरितà¥à¤° आदि की शिकà¥à¤·à¤¾ दिया करता था और संसार के लोग अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ के लिठà¤à¤¾à¤°à¤¤ में ही आया करते थे। यह इस कारण से समà¥à¤à¤µ हà¥à¤† था कि सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आरमà¥à¤ में पà¥à¤°à¤¥à¤® दिन ही ईशà¥à¤µà¤° ने मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को यà¥à¤µà¤¾à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ में अमैथà¥à¤¨à¥€ सृषà¥à¤Ÿà¤¿ कर आरà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤¤à¥à¤°à¥à¤¤ में जनà¥à¤® दिया था और साथ हि उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ सà¤à¥€ सतà¥à¤¯ विदà¥à¤¯à¤¾à¤“ं से समà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ कराने के लिठवेदों का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ à¤à¥€ दिया था।
हिमादà¥à¤°à¤¿ जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤· का पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ है। इस गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ में à¤à¤• शà¥à¤²à¥‹à¤• आता है ‘चैतà¥à¤°à¥‡ मासि जगदॠबà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ ससरà¥à¤œ पà¥à¤°à¤¥à¤®à¥‡à¤½à¤¹à¤¨à¤¿à¥¤ शà¥à¤•à¥à¤²à¤ªà¤•à¥à¤·à¥‡ समगà¥à¤°à¤¨à¥à¤¤à¥, तदा सूरà¥à¤¯à¥‹à¤¦à¤¯à¥‡ सति।।’ इसका अरà¥à¤¥ है कि चैतà¥à¤° शà¥à¤•à¥à¤² पकà¥à¤· के पà¥à¤°à¤¥à¤® दिन सूरà¥à¤¯à¥‹à¤¦à¤¯ के समय बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ ने जगत की रचना की। पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤·à¤¾à¤šà¤¾à¤°à¥à¤¯ à¤à¤¾à¤¸à¥à¤•à¤°à¤¾à¤°à¥à¤šà¤¾ रचित ‘‘सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ शिरोमणि” का à¤à¤• शà¥à¤²à¥‹à¤• ‘लंकानगरà¥à¤¯à¤¾à¤®à¥à¤¦à¤¯à¤¾à¤šà¥à¤š à¤à¤¾à¤¨à¥‹à¤¸à¥à¤¤à¤¸à¥à¤¯à¥ˆà¤µ वारं पà¥à¤°à¤¥à¤®à¤‚ बà¤à¥‚व। मघोः सितादेरà¥à¤¦à¤¿à¤¨à¤®à¤¾à¤¸à¤µà¤°à¥à¤·à¤¯à¥à¤—ादिकानां यà¥à¤—पतà¥à¤ªà¥à¤°à¤µà¥ƒà¤¤à¥à¤¤à¤¿à¤ƒà¥¤à¥¤’ है। इसका à¤à¤¾à¤µà¤¾à¤°à¥à¤¥ है कि लंका नगरी में सूरà¥à¤¯ के उदय होने पर उसी सूरà¥à¤¯ के वार अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ आदितà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤° को चैतà¥à¤° मास, शà¥à¤•à¥à¤² पकà¥à¤· के आरमà¥à¤ में दिन, मास, वरà¥à¤· व यà¥à¤— आदि (अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ सृषà¥à¤Ÿà¤¿ संवतà¥à¤¸à¤°) à¤à¤• साथ आरमà¥à¤ हà¥à¤à¥¤ आज à¤à¥€ संसार के अधिकांश विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ इन तथà¥à¤¯à¥‹à¤‚ से अपरिचित है। जिन को इसका जà¥à¤žà¤¾à¤¨ à¤à¥€ होता है तो वह संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ में होने के कारण इसे सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° नहीं करते। हां, यदि इसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° का कोई लेख अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥€ व अनà¥à¤¯ किसी यूरोपीय à¤à¤¾à¤·à¤¾ के पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ में होता तो सारा विशà¥à¤µ इसे कà¤à¥€ का à¤à¤• मत से सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° कर लेता। कोई सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° करे या न करे परनà¥à¤¤à¥ यह दोनों शà¥à¤²à¥‹à¤• व इसमें लिखी व कहीं बातें आपà¥à¤¤-पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£, सृषà¥à¤Ÿà¤¿ कà¥à¤°à¤®, यà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿, तरà¥à¤• व जà¥à¤žà¤¾à¤¨ विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ के आधार पर सतà¥à¤¯ सिदà¥à¤§ होती हैं। इन तथà¥à¤¯à¥‹à¤‚ व पूरà¥à¤µ से चली आ रही परमà¥à¤ªà¤°à¤¾à¤“ं से यह जà¥à¤žà¤¾à¤¤ होता है कि चैतà¥à¤° शà¥à¤•à¥à¤²à¤¾ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤ªà¤¦à¤¾ के इस दिवस से ही बà¥à¤°à¤¹à¥à¤® दिन, सृषà¥à¤Ÿà¤¿ संवतà¥, वैवसà¥à¤µà¤¤à¤¾à¤¦à¤¿ मनà¥à¤µà¤¨à¥à¤¤à¤° का आरमà¥à¤, सतयà¥à¤— आदि यà¥à¤—ारमà¥à¤, कलिसंवतà¥, विकà¥à¤°à¤® संवतॠका आरमà¥à¤ होता है।
आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ के विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ पं. à¤à¤µà¤¾à¤¨à¥€ पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ लिखते हैं कि आदि सृषà¥à¤Ÿà¤¿ से ही आरà¥à¤¯ जाति में नवसंवतà¥à¤¸à¤°à¤¾à¤°à¤®à¥à¤ का वरà¥à¤· मानने की पà¥à¤°à¤¥à¤¾ पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ है। मà¥à¤¸à¤²à¤®à¤¾à¤¨à¥€ राजà¥à¤¯ में आरà¥à¤¯à¥‹à¤‚ की सनातन संसà¥à¤¥à¤¾à¤à¤‚ असà¥à¤¤-वà¥à¤¯à¤¸à¥à¤¤ होने पर à¤à¥€ नवसंवतà¥à¤¸à¤°à¥‹à¤¤à¥à¤¸à¤µ को समारोहपूरà¥à¤µà¤• मनाने की परिपाटी बराबर बनी हà¥à¤ˆ थी। इसका पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ देते हà¥à¤ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने दूसरे मतों के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ असहिषà¥à¤£à¥, पकà¥à¤·à¤ªà¤¾à¤¤à¥€ व अतà¥à¤¯à¤¾à¤šà¤¾à¤°à¥€ मà¥à¤—ल समà¥à¤°à¤¾à¤Ÿà¥ औरंगजेब के अपने जà¥à¤¯à¥‡à¤·à¥à¤ पà¥à¤¤à¥à¤° यà¥à¤µà¤°à¤¾à¤œ मà¥à¤¹à¤®à¥à¤®à¤¦ मोअजà¥à¤œà¤® के नाम लिखे à¤à¤• पतà¥à¤° से मिलता है। अपने पतà¥à¤° में औरंगजेब ने धृणा के शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ में लिखा था कि ‘ईरोज à¤à¤¯à¤¾à¤¦ मजू सअ सà¥à¤¤, व à¤à¤•à¤¾à¤¦-कफà¥à¤«à¤¾à¤° ह-नूद रोज ठजलूस विकà¥à¤°à¤®à¤¾à¤œà¥€à¤¤ लाईन व मबदाठतारीख ठहिंदू।’ अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ यह दिन अगà¥à¤¨à¤¿à¤ªà¥‚जक (पारसियों) का परà¥à¤µ है, और काफिर (धरà¥à¤®à¤¶à¥‚नà¥à¤¯) हिनà¥à¤¦à¥à¤“ं के विशà¥à¤µà¤¾à¤¸à¤¾à¤¨à¥à¤¸à¤¾à¤° धिकà¥à¤•à¥ƒà¤¤ विकà¥à¤°à¤®à¤¾à¤œà¥€à¤¤ की राजà¥à¤¯à¤¾à¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• तिथि है और à¤à¤¾à¤°à¤¤à¤µà¤°à¥à¤· का नव संवतà¥à¤¸à¤°à¤¾à¤°à¤®à¥à¤ दिवस है।
नवसंवतà¥à¤¸à¤°-आरमà¥à¤-उतà¥à¤¸à¤µ संसार की पà¥à¤°à¤¾à¤¯à¤ƒ सब सà¤à¥à¤¯ जातियों में मनाया जाता है। ईसाइयों के यहां उसको नà¥à¤¯à¥‚ इयरà¥à¤¸ डे (New Years Day) कहते हैं और वह पहली जनवरी को होता है। फारस देश के पारसियों के यहां वह जशà¥à¤¨ नौरोज के नाम से पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ है। अनà¥à¤¯ जातियों में जहां इस अवसर पर केवल पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨à¤¤à¤¾ पà¥à¤°à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¨ और रंग-रेलियां मनाने की रीति है, वहां धरà¥à¤®à¤ªà¥à¤°à¤¾à¤£ आरà¥à¤¯ जाति में आननà¥à¤¦à¤¾à¤¨à¥à¤à¤µ के साथ-साथ यजà¥à¤ž आदि धरà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥à¤·à¥à¤ ानपूरà¥à¤µà¤• इस उतà¥à¤¸à¤µ को मनाने की परमà¥à¤ªà¤°à¤¾ है। पं. à¤à¤µà¤¾à¤¨à¥€ पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ जी ने आगे लिखा है कि पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ होता है कि सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आरमà¥à¤ के पà¥à¤°à¤¥à¤® दिन चैतà¥à¤° शà¥à¤•à¥à¤² पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤ªà¤¦à¤¾ के दिन सौर मेष संकà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤¿ à¤à¤• साथ ही पड़ी थी, किनà¥à¤¤à¥ पीछे से सौर और चानà¥à¤¦à¥à¤° वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ की दो पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° की गणना संसार में पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ होने पर सौर और चानà¥à¤¦à¥à¤° संवतà¥à¤¸à¤°à¥‹à¤‚ का नवसंवतà¥à¤¸à¤°à¤¾à¤°à¤®à¥à¤ à¤à¥€ पृथकॠपृथकॠतिथियों पर होने लगा। चानà¥à¤¦à¥à¤° संवतà¥à¤¸à¤°à¤¾à¤°à¤®à¥à¤ चैतà¥à¤° शà¥à¤•à¥à¤²à¤¾ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤ªà¤¦à¤¾ को और सौर संवतà¥à¤¸à¤°à¤¾à¤°à¤®à¥à¤ मेष संकà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤¿ के दिन होता है। अतः ऋतà¥à¤“ं की गणना सौर वरà¥à¤· के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° ही होती है, इसलिठà¤à¥‚मणà¥à¤¡à¤² की अधिकांश सà¤à¥à¤¯ जातियों में सौर संवतà¥à¤¸à¤° पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ है। à¤à¤¾à¤°à¤¤à¤µà¤°à¥à¤· के à¤à¥€ अधिकांश पà¥à¤°à¤¾à¤‚तों में सौर वरà¥à¤· का ही वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° है। बंगाल पà¥à¤°à¤¾à¤‚त में बंगाबà¥à¤¦, दकà¥à¤·à¤¿à¤£ में शालिवाहन शक और पंजाब में पà¥à¤°à¤µà¤¿à¤·à¥à¤Ÿà¤¾ सौर वरà¥à¤· गणना पर ही चलते हैं। अतà¤à¤µ आरà¥à¤¯ जाति में जहां चैतà¥à¤° शà¥à¤•à¥à¤²à¤¾ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤ªà¤¦à¤¾ को चानà¥à¤¦à¥à¤° नव-संवतà¥à¤¸à¤°à¤¾à¤°à¤®à¥à¤ का समारोह होता है, वहां मेष संकà¥à¤°à¤¾à¤‚ति के दिन सौर संवतà¥à¤¸à¤°à¥‡à¤·à¥à¤Ÿà¤¿ à¤à¥€ की जाती है। अतà¤à¤µ जिन पà¥à¤°à¤¾à¤‚तों में चानà¥à¤¦à¥à¤° संवतà¥à¤¸à¤° का वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° होता हो, वहां चैतà¥à¤° सà¥à¤¦à¤¿ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤ªà¤¦à¤¾ को नवसंवतà¥à¤¸à¤°à¤¾à¤°à¤®à¥à¤à¥‹à¤¤à¥à¤¸à¤µ वा संवतà¥à¤¸à¤°à¥‡à¤·à¥à¤Ÿà¤¿ परà¥à¤µ मनाना चाहिà¤à¥¤ इस दिवस को वृहत यजà¥à¤ž कर मनाने के साथ सामूहिक पà¥à¤°à¥€à¤¤à¤¿à¤à¥‹à¤œ वा लंगर तथा कावà¥à¤¯ गोषà¥à¤ ी सहित बालक-बालिकाओं à¤à¤µà¤‚ यà¥à¤µà¤¾à¤“ं की अनेक पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤—ितायें आयोजित कर मनाया जा सकता है। इस परà¥à¤µ के महतà¥à¤µ को जानकर और इसे सामूहिक रूप से वृहत यजà¥à¤ž, सामूहिक पà¥à¤°à¥€à¤¤à¤¿à¤à¥‹à¤œ व अनेक पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤—िताओं के आयोजन के साथ मनाने से समाज में अचà¥à¤›à¥€ परमà¥à¤ªà¤°à¤¾à¤“ं के सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ होने से लाठमिल सकता है।
समय के साथ नववरà¥à¤·à¤¾à¤à¤¿à¤¨à¤¨à¥à¤¦à¤¨ के इस दिन से अनेक à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ घटनायें जà¥à¤¡à¤¤à¥€ व विसà¥à¤®à¥ƒà¤¤ होती गई हैं। समà¥à¤ªà¥à¤°à¤¤à¤¿ सà¥à¤ªà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ राजा विकà¥à¤°à¤®à¤¾à¤¦à¤¿à¤¤à¥à¤¯ का राजà¥à¤¯à¤¾à¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• à¤à¥€ इस नववरà¥à¤·à¤¾à¤°à¤®à¥à¤ के दिन से जà¥à¤¡à¤¼à¤¾ हà¥à¤† है जो अब से 2072 वरà¥à¤· पूरà¥à¤µ हà¥à¤† था। महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ यà¥à¤¦à¥à¤§ के बाद महाराज यà¥à¤§à¤¿à¤·à¥à¤ िर जी ने à¤à¥€ इस नवसंवतà¥à¤¸à¤°à¤¾à¤®à¥à¤ के दिवस पर ही राजà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥‹à¤¹à¤£ किया था। à¤à¤¸à¥€ अनà¥à¤¯ कई घटनायें हो सकती हैं परनà¥à¤¤à¥ इस दिन मà¥à¤–à¥à¤¯ महतà¥à¤µ इस दिन से इस सृषà¥à¤Ÿà¤¿, मानवोतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ व ईशà¥à¤µà¤° से सब सतà¥à¤¯ विदà¥à¤¯à¤¾à¤“ं की पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• वेदों का चार ऋषियों अगà¥à¤¨à¤¿, वायà¥,आदितà¥à¤¯ व अंगिरा को जà¥à¤žà¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होना है जो हमारे ऋषि व पूरà¥à¤µà¤œà¥‹à¤‚ की तपसà¥à¤¯à¤¾ से आज तक सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ है। यही वेद जà¥à¤žà¤¾à¤¨ आज सà¤à¥€ परा व अपरा अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ आधà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤¿à¤• व à¤à¥Œà¤¤à¤¿à¤• विदà¥à¤¯à¤¾à¤“ं का आधार है। इस नववरà¥à¤· को मनाते हà¥à¤ यदि हम वेदाधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ का संकलà¥à¤ª लें और वेदों के संरकà¥à¤·à¤£ की योजना बनायें, तो यह à¤à¥€ उचित होगा।
ALL COMMENTS (0)